
रायगढ़, 16 अक्टूबर / ग्रामीण विकास और सार्वजनिक संपत्ति के प्रबंधन में पारदर्शिता का अभाव अक्सर स्थानीय समुदायों में असंतोष का कारण बनता है। ऐसा ही एक मामला छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले की पुसौर तहसील अंतर्गत तुरंगा ग्राम पंचायत से सामने आया है, जहां एक खेल मैदान के सीमांकन की प्रक्रिया को लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। स्थानीय निवासी पद्मनाभ प्रधान ने इस प्रक्रिया को ‘चोरी-चुपके’ तरीके से अंजाम दिए जाने का दावा किया है, जिसमें न तो ग्राम पंचायत के पंचों और सरपंच की उपस्थिति थी, न ही गांव के आम लोगों को कोई सूचना दी गई। यह घटना 15 अक्टूबर 2025 को हुई, और इसमें राजस्व निरीक्षक (आरआई) तथा पटवारी की भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।पद्मनाभ प्रधान, जो खुद इस मुद्दे पर आवेदन देकर सीमांकन की मांग कर चुके हैं, ने बताया कि खेल मैदान की सरकारी भूमि पर लंबे समय से अवैध कब्जे चल रहे हैं। उनके अनुसार, सीमांकन की प्रक्रिया में इन कब्जों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। “जितने स्टेडियम बनाने हैं, उतने ही हिस्से का सीमांकन किया गया, बाकी भूमि को छोड़ दिया गया,” प्रधान ने कहा। उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई—न मुनादी हुई, न ही कोई सार्वजनिक नोटिस जारी किया गया। इससे लगता है कि प्रक्रिया में कुछ ‘झोल’ है, और संभावित काले कारनामों की बू आ रही है। प्रधान का आरोप है कि उनके अनुपस्थिति में यह काम किया गया, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की मूल भावना का उल्लंघन है।यह मामला ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन की पुरानी समस्या को उजागर करता है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में, जहां आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की निर्भरता सरकारी भूमि पर अधिक है, ऐसे सीमांकन खेल मैदानों, सामुदायिक स्थलों या अन्य सार्वजनिक उपयोग की जमीनों को प्रभावित करते हैं। तुरंगा ग्राम पंचायत, जो पुसौर तहसील का हिस्सा है, में खेल मैदान न केवल युवाओं के लिए मनोरंजन का साधन है, बल्कि सामाजिक एकजुटता का प्रतीक भी। यदि अवैध कब्जों को नजरअंदाज किया जाता है, तो यह न केवल कानूनी उल्लंघन है, बल्कि स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन भी। भूमि राजस्व अधिनियम के तहत, किसी भी सीमांकन में स्थानीय प्रतिनिधियों और प्रभावित पक्षों की भागीदारी अनिवार्य है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ लगता है।आरआई और पटवारी की भूमिका पर सवाल उठते हुए, प्रधान ने कहा कि उनका ‘बहुत बड़ा योगदान’ इस प्रक्रिया में था। ग्रामीण क्षेत्रों में पटवारी भूमि रिकॉर्ड के रखरखाव के लिए जिम्मेदार होते हैं, जबकि आरआई राजस्व संबंधी मामलों की निगरानी करते हैं। यदि इन अधिकारियों ने बिना उचित प्रक्रिया के सीमांकन किया, तो यह भ्रष्टाचार या पक्षपात की ओर इशारा करता है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, तुरंगा में सरकारी भूमि पर कब्जे की शिकायतें पहले भी आ चुकी हैं, लेकिन कार्रवाई का अभाव रहा है।

यह मामला अब जिला प्रशासन तक पहुंच सकता है, जहां प्रधान ने आगे की जांच की मांग की है।इस घटना के व्यापक प्रभाव को देखें तो, ग्रामीण विकास योजनाओं में पारदर्शिता की कमी से विश्वास का संकट पैदा होता है। छत्तीसगढ़ सरकार की ‘खेलकूद विकास योजना’ के तहत ऐसे मैदानों का विकास किया जाता है, लेकिन यदि सीमांकन में ही अनियमितता हो, तो योजनाएं कागजों तक सिमट जाती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि अवैध कब्जों को संरक्षण मिलता रहा, तो गांव के युवा खेल सुविधाओं से वंचित रहेंगे, और सामाजिक असमानता बढ़ेगी।जिला प्रशासन से इस संबंध में कोई आधिकारिक बयान अभी तक नहीं आया है। यदि आरोप सत्य साबित होते हैं, तो यह एक बड़ा घोटाला बन सकता है। पद्मनाभ प्रधान जैसे सक्रिय नागरिकों की आवाजें ही ऐसी अनियमितताओं को उजागर करती हैं। उम्मीद है कि जांच से सच्चाई सामने आएगी, और तुरंगा के खेल मैदान को उसके वास्तविक स्वरूप में बहाल किया जाएगा।





