
आलेख = रामचन्द्र शर्मा
रायगढ़। दोस्तों मेरे द्वारा अक्सर कोई लेख या वीडियो बनाया जाता है। तो अधिकांश समय मे वह सकारात्मक बातों तथा जीवन पर आधारित होता है। आज का यह लेख भी वैसे तो सकारात्मक दृष्टिकोण से ही लिख रहा हूं। लेकिन जो संदर्भ इसके लिए लेना पड़ा है। वह बहुत दुखदाई एवं करूणा से भरा हुआ है। पिछले दिनों एक घटना हुई जिसमें एक नाबालिक बच्चे ने जाने-अनजाने क्रिकेट के बल्ले से मां के सिर पर वार किया जिससे उस महिला की मौत हो गई। उस वार के पीछे बात यह थी कि मां ने बच्चे को जरूरत से ज्यादा मोबाईल खेलने के लिए मना किया और बच्चे से मोबाईल लेकर अपने काम में लग गई। इधर वह नाबालिक बच्चा जो दुनियादारी को नहीं समझता था वह आक्रोश में आकर कार्य करती हुई मां के ऊपर क्रिकेट के बल्ले से सिर पर वार कर दिया। जिससे मां का दर्दनाक अंत हो गया। दोस्तो यह सामान्य घटना नही है और न ही यह ऐसी पहली घटना है। लेकिन भगवान करे यह ऐसी आखरी घटना हो। अब यदि हम इसके कारण पर जाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल माता या पिता बच्चों के बालपन, बचपन की शैतानी, बार-बार माता-पिता को किसी बात के लिए पूछना आदि से माता-पिता स्वयं को त्रस्त समझते हैं या आक्रोशित हो जाते हैं। इसके चलते वे बच्चे को शांत रखने का जरिया मोबाईल समझते हैं। साथियों मोबाईल भी एक प्रकार का नशा है। आप और हम भी हर पांच मिनट में यह चेक करते हैं कि मोबाईल पर कोई मैसेज या वाट्सअप तो नहीं आया। तो फिर पांच से दस साल के बच्चे से कैसे उम्मीद करें कि वह स्वयं को नियंत्रण में रख लेगा। अत: हम पालकों को यह सोचना होगा कि बच्चे को मोबाईल किस उम्र में दें और कितनी देर के लिए दें। यदि आपने बच्चे के खेलकूद को, बचपन की शैतानी को अपनी परेशानी समझा और उसे दूर करने के लिए बच्चे के हाथ में घंटों मोबाईल दिया तो ऐसा परिणाम आना सामान्य है। कई बार ऐसा भी होता है कि आपको टीवी देखना है या बच्चे की कोई जिद पूरी करनी है तो आप उसके हाथ में मोबाईल देकर कहते हैं कि जा वीडियो देख ले या गेम खेल ले। इसका परिणाम और भी बुरा मिलता है। परसो ही एक बच्चे ने मोबाईल गेम पबजी खेलते हुए आत्महत्या कर ली। हम पालकों को यह सोचना होगा कि इन सब बातों में हमारी क्या जिम्मेदारी बनती है। क्या हम मोबाईल देने की बजाए उसके साथ बात नहीं कर सकते, खेलने के लिए मैदान नहीं भेज सकते, उसे सीखने के लिए किताबें हाथ में नही दे सकते, यदि घर पर बुजुर्ग हैं तो उनके साथ कुछ सीखने के लिए नहीं छोड़ सकते। यदि टीवी, मोबाईल चलाना है तो अपने साथ बैठाकर कुछ प्रेरक बातें या वीडियो नही दिखा सकते। सभी पालको को समय-समय पर यह ध्यान भी देना चाहिए कि बच्चा जरूरत से ज्यादा मोबाईल तो नहीं खेल रहा है। क्या उसके व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है। जब कभी उसे मोबाईल छोडऩे के लिए कहा जाता है तो उसका ध्यान या उसका व्यवहार कैसा हो रहा है। यदि वह चिड़चिड़ापन दिखा रहा है तो उस पर गौर कर सुधार करना चाहिए। यह लेख लिखते हुए मुझे बहुत पीड़ा हो रही है क्योंकि इससे मां की ममता और पिता के संस्कार खोखले नजर आते हैं कि एक बच्चे ने जाने-अनजाने में मां की हत्या कर दी। इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। लेकिन सार यही है कि बच्चे पर ध्यान दे, अपने साथ उसका जुड़ाव रखे, कभी उसको कोई तकलीफ हो तो वह बोल सके। इस विषय पर मेरे यू टूब चैनल mentor ramchandra sharma में मंगलवार को दोपहर 1:00 बजे एक वीडियो भी अपलोड करूंगा ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों एवं पालकों के पास इस गंभीर बात को पहुंचा सकूं। बहरहाल यही कहना चाहूंगा कि बच्चे संस्कारित और सफल हैं तो माता-पिता का जीवन भी सफल है। वर्ना कितना ही नाम, पैसा, ईज्जत, भौतिक सुख-सुविधा मिल जाए सब मिट्टी है और अंत में इसी मिट्टी में मिल जाना है। सभी से निवेदन है कि बच्चों पर ध्यान दें ताकि वे कुछ गलत करने से पहले 100 बार आपकी बातों और संस्कार को याद करके गलती करने से बचें।
आलेख = रामचन्द्र शर्मा