
भाजपा शासन में अधिकारी का डर समाप्त, अभिलेख दुरूस्त कराने के लिए बड़ी रकम की डिमांड
क्रांतिकारी न्यूज/ रायगढ़। तहसील कार्यालय गरीब, मजदूर, किसान, ग्रामीण आदि के लिए प्रशासनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा कार्यालय होता है। लेकिन जिले का पुसौर तहसील कार्यालय इन सबके लिए गले की फांस बन गया है। अर्थात पुसौर तहसील विभिन्न कारणों से लेन-देन का और भ्रष्टाचार का गढ़ बन गया है। ऊपर से लेकर नीचे तक बिना पैसा दिए कोई भी कार्य समय पर नहीं हो रहा है।
छोटे से छोटे अभिलेख को दुरूस्त कराने के लिए बड़ी-बड़ी रकम की डिमांड हो रही है। यदि यह डिमांड पूरी न हो तो गरीब किसान व ग्रामीण को नियम कानून के चक्कर में ऐसा उलझाते हंै कि वह परेशान होकर या तो काम की उम्मीद छोड़ देता है या जो डिमांड है उसे पूरी करने के लिए बाध्य हो जाता है। चाहे उस रकम के लिए उसे अपने घर का सोना या जमीन गिरवी रखनी पड़े या सूदखोर के चक्कर में आकर कर्ज लेना पड़े। कुल मिलाकर तकलीफ तो ग्रामीण को ही होनी है। कई बार इस बात की शिकायत मौखिक एवं लिखित रूप मे विभिन्न स्तर पर हो चुकी है लेकिन अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि उनके कानों पर जूं नहीं रेंगती। सब मिलाकर ढाक के तीन पात। ऐसे में गरीब प्राणी जाए तो कहा जाए।
डिमांड हुई दुगुनी
पुसौर तहसील कार्यालय का यह आलम है कि जब से सरकार में बदलाव हुआ है तो डिमांड में भी बदलाव हुआ है। तहसील कार्यालय के सूत्रो ने बताया कि जो कार्य 2 हजार रुपए में होता था वह कार्य 4 हजार में भी बड़ी मुश्किल से हो रहा है। इसी तरह जो कार्य 5 हजार में वो कार्य 10 हजार में भी नहीं होते दिखता है। ऐसे मे गरीब किसान जिसको हर रोज छोटा मोटा काम पुसौर तहसील कार्यालय मे पड़ता रहता है वह अपनी जेब को खाली करके अधिकारियों एवं स्टॉफ के समक्ष हाथ जोड़ते घूमता फिर रहा है। फिर चाहे वह निचला स्टॉफ हो जो डिमांड है वह तो पूरी तो करनी ही होगी। ऊपर से तुर्रा यह सूनना पड़ता है कि अरे भाई इसमे सबका हिस्सा है। इसलिए पैसे तो लगेंगे ही।

राजस्व संग्रह में हीला-हवाला
पुसौर तहसील कार्यालय अन्य तहसील कार्यालयों की तुलना में राजस्व वसूली मे भी घूसखोरी ज्यादा कर रहा है। अर्थात यदि राजस्व संग्रह के लिए कोई व्यक्ति टालमटोल करता है तो तहसील कार्यालय से उसके एवज में कुछ भेंट चढ़ाने का निर्देश आ जाता है। मतलब यदि आपके ऊपर किसी प्रकार का टैक्स बकाया है तो उस टैक्स को पटाने की बजाए कार्यालय में जेब गर्म कर दी जाए या मनचाही भेंट दे दी जाए तो आसानी से टैक्स पटाने की छूट मिल जाती है। ऐसे में गरीब गुरबा का क्या हाल होता होगा? यह सोचने वाली बात है।
कर्मचारियों पर लगाम नहीं
पुसौर तहसील कार्यालय से जुड़े हुए सूत्र ने बताया कि आफिस स्टॉफ से लेकर फिल्ड स्टॉफ तक अधिकारी के नियंत्रण में नहीं है। किसी का कार्य करना हो तो वह ग्रामीण स्टॉफ को खोजते रह जाता है। यदि किसी प्रकार की शिकायत मौखिक या लिखित रूप से तहसील प्रभारी को करता है तो वह अपने अधिनस्थ का ही पक्ष लेता है क्योंकि उस अधिनस्थ से उसका हित जुड़ा हुआ है। किसान या गरीब जब तक परेशान नहीं होगा तब तक भला वह हिस्सा ऊपर तक कैसे पहुंचाएगा। इस हिस्सेदारी के चक्कर मे ग्रामीण पिसता रह जाता है। सूत्र ने यह भी बताया कि अनेक प्रकार के बहाने बनाकर स्टॉफ कार्यालय से अधिकांश समय पर उपलब्ध नहीं रहता है जिसके कारण ग्रामीणों को भटकना पड़ता है।