
प्रधानमंत्री सड़क योजना में गड़बड़ी के खिलाफ आवाज उठाना पड़ा भारी
क्रांतिकारी संकेत
रायगढ़। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में अनियमितताओं और फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए ग्राम पंचायत गोढ़ी के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने एक सामूहिक कदम उठाया है, जिससे शासन और प्रशासन की पारदर्शिता पर गहरे सवाल खड़े हो गए हैं। मामला केवल सडक़ निर्माण में भ्रष्टाचार का नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण स्वशासन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रशासनिक जवाबदेही के मूलभूत सवालों को सामने लाता है।
तमनार विकासखंड के ग्राम पंचायत गोढ़ी से कसडोल तक प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना के तहत सडक़ निर्माण कार्य चल रहा है, जिसे जिंदल पावर लिमिटेड अपने डीएमएफ फंड से करवा रही है। इस कार्य में कई अनियमितताओं की शिकायत मिल रही थी। विशेषकर किसानों की ज़मीन को बिना सहमति और मुआवज़े के चौड़ीकरण के लिए उपयोग किए जाने को लेकर। स्थिति का जायजा लेने जब गांव के पंचायत प्रतिनिधि और पत्रकार मौके पर पहुंचे, तो ठेकेदार से कई अहम सवाल किए गए। मुआवज़ा नीति क्या है? कार्य की लागत और प्राकलन रिपोर्ट कहाँ है? निर्माण की विधिवत अनुमति है या नहीं? इसी बीच घरघोड़ा के एसडीएम रमेश मोर ने फोन पर जनप्रतिनिधियों और पत्रकारों को सरकारी कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए एफआईआर की धमकी दी। इस घटनाक्रम के विरोध में ग्राम पंचायत गोढ़ी के सरपंच, उपसरपंच और समस्त पंचों ने सामूहिक त्यागपत्र देकर शासन के समक्ष लोकतंत्र की एक गंभीर चुनौती पेश कर दी है।
त्यागपत्र ऐसे समय में दिया गया है जब राज्य सरकार ‘सुशासन तिहार’ मना रही है।ष यह ताजपोशी और जमीन के बीच की खाई को उजागर करता है। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि इस पूरे प्रकरण को कुछ प्रभावशाली जनप्रतिनिधियों और स्थानीय नेताओं का संरक्षण भी प्राप्त है, जो औद्योगिक हितों को ग्रामीण हितों से ऊपर रख रहे हैं। यह न केवल पंचायती राज की आत्मा को आहत करता है, बल्कि यह बताता है कि जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक इकाइयों की स्वतंत्रता किस हद तक संकट में है।
पंचायती राज बनाम प्रशासनिक दबाव
पंचायती राज व्यवस्था संविधान की 73वीं अनुसूची के अंतर्गत स्थापित एक सशक्त विकेन्द्रीकृत प्रणाली है, जो ग्राम स्तर पर जन भागीदारी सुनिश्चित करती है। जब स्थानीय निकायों को ऐसे निर्णयों पर सवाल उठाने पर धमकियां मिलें और त्यागपत्र देना पड़े, तो यह केवल एक स्थानीय विवाद नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी बन जाता है। अब यह देखना होगा कि क्या राज्य सरकार इस संवेदनशील मामले में निष्पक्ष जांच करेगी, जनप्रतिनिधियों की बात सुनेगी और प्रशासनिक पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी या यह मामला भी औद्योगिक और राजनीतिक गठजोड़ की भेंट चढ़ जाएगा।