
पूर्व सचिव निलंबित, बड़े-बड़े पत्थर और बोल्डर को ही पुल निर्माण का आधार मान लिया गया
क्रांतिकारी संवाददाता
लैलूंगा। ग्राम पंचायत बसंतपुर में इन दिनों एक ऐसा पुल निर्माण हो रहा है जिसे देखकर ग्रामीणों की आंखें खुली की खुली रह गई हैं। यह कोई साधारण निर्माण कार्य नहीं, बल्कि ‘राम सेतु’ की तर्ज पर किया जा रहा है, जहां बड़े-बड़े जंगली पत्थर और बोल्डर को ही पुल निर्माण का आधार मान लिया गया है। सवाल यह उठता है कि क्या यह पुल आधुनिक तकनीक से बन रहा है या फिर प्रशासन त्रेता युग के इंजीनियरिंग मॉडल पर लौट चुका है?
जनता में इस पूरे मामले को लेकर गहरा आक्रोश है। ग्रामवासियों का कहना है कि ग्राम पंचायत में वर्षों से विकास कार्य अधूरे पड़े हैं। सडक़, पानी, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है, लेकिन जब भी कोई योजना आती है, तो उसमें भारी भ्रष्टाचार कर दिया जाता है। ‘हमारे गांव में पहले भी पुल के नाम पर पैसे निकाले गए, अब फिर से वही खेल हो रहा है,’ एक बुजुर्ग ग्रामीण ने नाराजगी जताते हुए कहा। जनपद उपाध्यक्ष मनोज अग्रवाल ने तंज कसते हुए कहा – ‘धन्य हैं लैलूंगा के त्रेता युग के इंजीनियर, जिन्हें बोल्डर और जंगली पत्थर भी पुल के निर्माण सामग्री नजर आते हैं। विकास के नाम पर जो छलावा चल रहा है, वह शर्मनाक है।’ उन्होंने राज्य शासन और जिला प्रशासन से इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है।
गौरतलब है कि यह वही पुल है जिसके नाम पर पहले भी 17 लाख रुपये का फर्जी आहरण का मामला सामने आया था। उस समय ग्राम पंचायत बसंतपुर के तत्कालीन सचिव नीलांबर चौहान पर आरोप लगा था की हड़ताल अवधि में बिना निर्माण कार्य किए ही लाखों रुपये का भुगतान कर दिया गया। जनपद उपाध्यक्ष अजेय योद्धा मनोज अग्रवाल ‘सुखन’ ने इस मामले की शिकायत की थी, जिसके बाद जांच में आरोप सही पाए गए और सचिव नीलांबर चौहान को निलंबित कर दिया गया। ग्राम पंचायत बसंतपुर में पुल निर्माण के नाम पर हो रही यह कथित ‘राम सेतु परियोजना’ अब भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है। जिस तरह से पूर्व में फर्जी आहरण हुआ था और अब फिर से बिना तकनीकी मानकों के निर्माण कार्य चल रहा है, वह ग्रामीण विकास की योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
जरूरत है कि शासन-प्रशासन सजग होकर इस मामले की निष्पक्ष जांच कराए और दोषियों पर कठोर कार्रवाई करे। नहीं तो यह ‘पुल’ विकास से ज्यादा भ्रष्टाचार की गहराई में डूब जाएगा।
दोबारा उसी पुल का निर्माण: फिर वही अनियमितता
चौंकाने वाली बात यह है कि अब उसी पुल का दोबारा निर्माण कराया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इसकी लागत 19 लाख रुपये है। लेकिन निर्माण की स्थिति देखकर समझा जा सकता है कि पैसों का किस तरह से बंदरबांट किया जा रहा है। पुल के नाम पर अब भी बड़े-बड़े पत्थरों को बिना किसी तकनीकी संरचना के बीच नदी में बिछाया जा रहा है। न तो रिटेनिंग वॉल है, न ढलाई की कोई ठोस योजना, और न ही इंजीनियरिंग के किसी मानक का पालन।
सरपंच, सचिव, तकनीकी सहायक और इंजीनियर की मिलीभगत?
स्थानीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों का आरोप है कि इस पूरे निर्माण कार्य में सरपंच, पंचायत सचिव, तकनीकी सहायक और इंजीनियर की मिलीभगत है। सभी ने मिलकर इस परियोजना को केवल कागजों पर पूरा करने की योजना बनाई है, ताकि एक बार फिर सरकारी राशि का दुरुपयोग किया जा सके। ग्रामीणों का कहना है कि यदि समय रहते जांच नहीं हुई तो यह मामला एक और बड़ा पंचायत घोटाला बन सकता है।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
इस मामले में अब तक प्रशासन की तरफ से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। न तो ब्लॉक स्तर के अधिकारी सामने आए हैं और न ही तकनीकी विभाग के किसी अधिकारी ने स्थल निरीक्षण कर कोई रिपोर्ट जारी की है। इससे साफ है कि मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है।