
श्रमजीवी पत्रकार कल्याण संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
क्रांतिकारी संकेत
रायगढ़। घरघोड़ा में जमीन के बदले मुआवज़े के नाम पर एक और बड़ा घोटाला सामने आने की आहट तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार कल्याण संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम भोजवानी ने मुख्यमंत्री और राजस्व मंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि हाल ही में ट्रांसफर हुए वर्तमान एसडीएम मोर के पूरे कार्यकाल की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए। आरोपों के मुताबिक, एसडीएम मोर ने पहले भी घरघोड़ा से ट्रांसफर होने के बावजूद कार्यभार नहीं छोड़ा और पद पर जमे रहे थे। इस दौरान कोयला खदानों के विस्तार के लिए जिन गांवों की जमीन का सर्वे और मुआवज़ा तय किया गया, वहां निर्माण पर रोक के बावजूद धड़ल्ले से अवैध निर्माण हुए। बताया जा रहा है कि गलत सर्वे, फर्जी दस्तावेज़ और अपने खास लोगों के लिए फायदे का जाल बिछाकर मुआवज़ा राशि का ऐसा खेल खेला गया, जो खुलासा होने पर ‘बजरमुड़ा घोटाले’ से भी बड़ा साबित हो सकता है।
गांव-गांव में मुआवज़ा माफिया सक्रिय, राजनीतिक दबाव में फैसले!
स्थानीय लोगों का कहना है कि एसडीएम मोर साहब के कार्यकाल में राजस्व मामलों में भारी अनियमितताएँ हुईं और जनता बार-बार न्याय के लिए दफ्तर के चक्कर काटती रही, लेकिन सुनवाई के नाम पर टालमटोल और पक्षपात का खेल चलता रहा। ग्रामीणों के मुताबिक, कोयला कंपनियों के साथ मिलीभगत कर जमीनों का मूल्यांकन मनमर्जी से तय किया गया, जिससे असली हकदार किसान और मज़दूर ठगा गया। कई गांवों में रातों-रात मुआवज़े के लिए रिकॉर्ड बदले गए ,राजनीतिक रसूखदारों के नाम पर बेहिसाब रकम जारी हुई। यही नहीं, निर्माण पर रोक के आदेश के बावजूद आलीशान ढांचे खड़े हो गए, और प्रशासन आंख मूंदे बैठा रहा। आरोप यह भी हैं कि एसडीएम ने अपने नजदीकी लोगों को करोड़ों का फायदा पहुंचाया और पूरे घरघोड़ा क्षेत्र में ‘मुआवज़ा माफिया’ का बोलबाला कायम रहा।
अब निगाहें सरकार की अगली चाल पर, जांच हुई तो हडक़ंप तय!
प्रदेश उपाध्यक्ष श्याम भोजवानी की चिट्ठी ने सियासी गलियारों से लेकर प्रशासनिक तंत्र में खलबली मचा दी है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार इन गंभीर आरोपों पर तुरंत एक्शन लेकर निष्पक्ष जांच बैठाएगी, या मामला फाइलों में दबा रहेगा। जानकारों का मानना है कि अगर जांच ईमानदारी से हुई, तो न सिर्फ मुआवज़ा घोटाले के काले चेहरे सामने आएंगे, बल्कि कई बड़े नाम भी कटघरे में होंगे। घरघोड़ा के लोग अब टकटकी लगाए बैठे हैं कि क्या इस ‘करोड़ों के खेल’ का सच आखिरकार उजागर होगा, या यह भी छत्तीसगढ़ के भ्रष्टाचार की एक और दबी-कुचली कहानी बनकर रह जाएगा।