
*आदिवासी भड़के तो संभालना होगा मुश्किल…..खदान स्थापना को लेकर बढ़ता जा रहा है आक्रोश*
क्रान्तिकारी न्यूज़ रायगढ़/ छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में अडानी समूह और अंबुजा सीमेंट्स की संयुक्त अंडरग्राउंड कोयला खदान परियोजना को लेकर स्थानीय आदिवासियों और ग्रामीणों में जबरदस्त आक्रोश बढ़ता जा रहा है। धरमजयगढ़ क्षेत्र के पुरुंगा में प्रस्तावित अंबुजा सीमेंट्स इस कोल ब्लॉक जिसे एमडीओ के तहत अदानी ग्रुप ने ले लिया है उसके पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर स्थानीय लोग चिंतित हैं। जिसके चलते 11 नवंबर को प्रस्तावित जनसुनवाई में भारी विरोध प्रदर्शन की आशंका है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर यह खदान स्थापित हुई तो वन्य जीव, सघन जंगल और खेती पर निर्भर किसान बुरी तरह प्रभावित होंगे। और अगर आदिवासियों का यह गुस्सा भड़का तो इसे संभालना प्रशासन के लिए बेहद मुश्किल हो जाएगा। अडानी अंबुजा समूह द्वारा प्रस्तावित संयुक्त अंडरग्राउंड माइन्स परियोजना को लेकर क्षेत्र में आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। ग्रामीणों और आदिवासी समुदायों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि उनकी जल-जंगल-जमीन पर अतिक्रमण की कोशिश की गई, तो आंदोलन तेज़ किया जाएगा। इस सिलसिले में बुधवार 22 अक्टूबर को अडानी अम्बुजा के संयुक्त अंडरग्राउंड कोल माइंस के प्रस्तावित जनसुनवाई को निरस्त करने की मांग को लेकर प्रभावित क्षेत्र के सैकड़ो की संख्या में हाथों में तख्ती लिए रायगढ़ जिला कलेक्टोरेट परिसर के अंदर घुस गए इसके बाद 2 घंटे तक कलेक्टोरेट के सामने बैठकर नारेबाजी करते रहे। इससे पहले क्षेत्रीय विधायक के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने कलेक्टर से मुलाकात कर फर्जी ग्राम सभा के आधार पर आयोजित जनसुनवाई को निरस्त करने की मांग और फर्जी दस्तावेज बनाने वाले अधिकारियों पर कार्यवाही और जांच की मांग कर चुके थे। लेकिन आंदोलनकारी महिलाएं और प्रभावित क्षेत्र के लोगों का कहना था कि कलेक्टर अपने ऑफिस से बाहर आकर सभी ग्रामीणों से बात करें। जिसको लेकर काफी देर तक हंगामा होता रहा। कलेक्टोरेट परिसर के अंदर पहुंच चुके ग्रामीणों का आक्रोश और भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन के हाथ पांव फूल गए।

इसके बाद एडिशनल कलेक्टर, भारी संख्या में पुलिस बल, जिला पर्यावरण अधिकारी सहित मौके पर कई आला अधिकारी पहुंचे। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों उनके मांग और प्रस्तावित जनसुनवाई होगी या नहीं इस संबंध में निर्णय लेने के लिए 24 घंटे का समय मांगा है। अब देखना यह होगा कि रायगढ़ जिला प्रशासन 11 नवंबर को होने वाली जनसुनवाई को यथावत रखती है या फिर आम जनता के मांग के अनुसार अडानी के इस कोल परियोजना के लिए होने वाली प्रस्तावित जनसुनवाई को भी निरस्त करती है। क्योंकि 14 अक्टूबर को जिंदल पावर लिमिटेड के लिए तमनार के धौराभाटा में होने वाले जनसुनवाई को ग्रामीणों के विरोध के बाद निरस्त कर दिया गया है।
वन, वन्य जीव और आजीविका पर संकट

पुरुंगा कोल ब्लॉक की स्थापना का विरोध कई गंभीर कारणों से किया जा रहा है। हाथियों का गलियारा यह क्षेत्र हाथियों के टापू (एलिफेंट कॉरिडोर) छाल रेंज के अंतर्गत आता है। ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों के अनुसार, अंडरग्राउंड माइनिंग और उससे जुड़ी गतिविधियों के शुरू होने से हाथियों का आवागमन बाधित होगा, जिससे मानव-हाथी संघर्ष में वृद्धि हो सकती है। वन विभाग के लिए भी वन्य जीवों को संरक्षित कर पाना कठिन हो जाएगा।
क्षेत्र के जल स्रोत पर पड़ेगा बुरा असर

खदान संचालन से आसपास के गांवों के किसानों की जमीन और जल स्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी आजीविका का मुख्य आधार कृषि और वनोपज है, जो इस परियोजना से सीधे खतरे में आ जाएगी।
जनसुनवाई में होगा मुखर विरोध

अंबुजा सीमेंट्स ने आबंटित इस कोल ब्लॉक का मालिकाना हक हासिल करने के बाद जनसुनवाई के लिए आवेदन दिया है। तारीख: 11 नवंबर को पुरुंगा में यह जनसुनवाई प्रस्तावित है। स्थानीय आदिवासी संगठन, ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ता इस जनसुनवाई का बहिष्कार और मुखर विरोध करने की रणनीति बना रहे हैं। उनकी मांग है कि क्षेत्र के पारिस्थितिकी संतुलन और आदिवासी हितों को देखते हुए इस खदान परियोजना को रद्द किया जाए।
जनप्रतिनिधि का समर्थन

स्थानीय विधायक लालजीत सिंह राठिया भी खुलकर ग्रामीणों के समर्थन में आ चुके हैं, जिससे विरोध प्रदर्शन को और बल मिला है। प्रशासन के लिए यह जनसुनवाई एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि आदिवासी समुदाय अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए आर-पार की लड़ाई के मूड में दिख रहा है। स्थानीय विधायक लालजीत ने कहा, “जल, जंगल और जमीन पर पहला अधिकार आदिवासियों का है। विकास के नाम पर यदि हमारी जड़ें छीनी गईं, तो संघर्ष अवश्य होगा।”
*प्राकृतिक संसाधनों को भी भारी नुकसान*

सूत्रों के अनुसार, यह परियोजना पुरुंगा और आसपास के तीन गांवों की भूमि को प्रभावित करेगी, जिससे न केवल स्थानीय किसानों की आजीविका पर असर पड़ेगा, बल्कि वन्य जीवों और प्राकृतिक संसाधनों को भी भारी नुकसान होने की आशंका है। ग्रामीणों का कहना है कि खदान से उत्पन्न कंपन, धूल और भूजल दोहन से पूरा पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है पूरा वन परिक्षेत्र बर्बाद हो जाएगा जंगल पूरी तरह नष्ट हो जाएगा। चार, चिरौंजी, आंवला, हर्रा, तेंदू, सराई , आम, इमली, जैसे सैकड़ो जंगली फसलें जो क्षेत्र के आदिवासी तथा अन्य ग्रामीणों के जीवन उपार्जन का मुख्य स्रोत है जो इस खदान के शुरू होने से पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।

सामाजिक संगठन भी हुऐ मुखर
नवनिर्माण संकल्प समिति एवं अन्य सामाजिक संगठनों ने आगामी 11 नवंबर को पुरुंगा में आयोजित प्रस्तावित जनसुनवाई में भारी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है। आंदोलनकारियों ने प्रशासन से मांग की है कि परियोजना को तुरंत रद्द किया जाए और प्रभावित ग्राम सभाओं की सहमति के बिना कोई कार्यवाही न की जाए। इस संबंध में नवनिर्माण संकल्प समिति के सचिव दीपक मंडल ने बताया कि प्रशासन सरकार के दबाव में पांचवी अनुसूची क्षेत्र में बिना ग्राम सभा के प्रस्ताव के पर्यावरण स्वीकृति के लिए जनसुनवाई करने जा रही है जो कानूनन गलत है। प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन जनसुनवाई को लेकर पुलिस व जिला प्रशासन सतर्क है। स्थिति को देखते हुए, आने वाले दिनों में पुरुंगा और आसपास के इलाकों में तनाव बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
कलेक्टोरेट परिसर के अंदर खाया बासी

80 किलोमीटर दूर से अपनी मांगों को लेकर आए ग्रामीणों ने बुधवार को कलेक्टर परिसर के अंदर ही बासी खाकर विरोध प्रदर्शन किया। सुबह से ही बड़ी संख्या में पहुंचे ग्रामीण, प्रशासन के रवैये से नाराज नजर आए।
ग्रामीणों का कहना है कि वे लंबे समय से अपनी समस्याओं को लेकर शासन-प्रशासन के पास गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला। मजबूर होकर उन्होंने परिसर में ही बासी खाकर अपनी नाराजगी जाहिर की। कलेक्टर कार्यालय परिसर में बढ़ती भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जातीं, वे धर्मजयगढ़ मुख्यालय में धरना जारी रखेंगे।





