
दीपक मण्डल प्रतिनिधि
रायगढ़/धरमजयगढ़ क्रांतिकारी न्यूज 19 नवंबर
रायगढ़ जिले का धरमजयगढ़ ब्लॉक एक बार फिर बड़े औद्योगिक और खनन विस्तार की चपेट में आता दिख रहा है। अदानी समूह की प्रस्तावित पुरुंगा अंडरग्राउंड खदान के विरोध की लपटें अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थीं कि अब एसईसीएल और कर्नाटक पावर कॉर्पोरेशन के नए सर्वे ने इलाके में हलचल बढ़ा दी है। धरमजयगढ़ आज विकास और विनाश दोनों की दहलीज़ पर खड़ा है। 6 नई खदानें, 56 गांव, हजारों परिवार मुआवजे की विसंगति और पेसा कानून की अनदेखी ये सब मिलकर एक बड़ा सामाजिक, पर्यावरणीय और मानवीय सवाल खड़ा करते हैं। धरमजयगढ़ का भविष्य किस दिशा में जाएगा—यह आने वाले समय में उद्योग, क्षेत्र के आवाम और सरकार के फैसले तय करेंगे। फिलहाल खदान स्थापना को लेकर सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के रवैया को देखते हुये स्थानीय ग्रामीण, किसान और विशेषकर आदिवासी समुदाय पूछ रहे हैं “क्या यह विकास है, हमारे अस्तित्व पर कुठाराघात है…?” स्थानीय प्रशासन, राज्य और केन्द्र सरकार कोयला मंत्रालय को कोल उत्खनन या नई परियोजनाओं को शुरू करने से पहले परियोजनाओं में प्रभावित होने वाले किसान निजी जमीनों के मालिक प्रभावित नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर तथा जंगल और पर्यावरणीय संरक्षण को लेकर नियमों में सकारात्मक बदलाव करना चाहिए।
मुआवजा, विस्थापन और रोजगार नीति स्पष्ट न होने से बढ़ा विरोध

धरमजयगढ़ में खनन परियोजनाओं को लेकर बढ़ती नाराज़गी आने वाले दिनों में और उग्र रूप ले सकती है, यदि मुआवजा और विस्थापन से जुड़े विवादों का समय रहते समाधान नहीं हुआ। प्रशासन और कंपनी की ओर से मुआवजा, विस्थापन और रोजगार नीति को लेकर ठोस और स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा रही है, जिसके कारण भ्रम और असंतोष बढ़ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण के बदले मिलने वाले मुआवजे की राशि, विस्थापन की प्रक्रिया और परिवारों को दिए जाने वाले रोजगार की शर्तों पर कोई लिखित और पारदर्शी नीति सामने नहीं आ रही। इससे प्रभावित गांवों में आक्रोश फैल रहा है। इन विषयों को उद्योग प्रबंधन तथा प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।
56 गांव सीधे प्रभावित होने की आशंका

जानकारी के अनुसार धरमजयगढ़ क्षेत्र में 6 नई कोयला खदानों के लिए भूमि सर्वे और फाइल मूवमेंट तेज किया जा रहा है। इन खदानों के दायरे में आने वाले 56 गांवों के खेत, जंगल, चारागाह और जलस्रोत प्रभावित होंगे। इनमें प्रमुख रूप से दुर्गापुर खुली खदान 2014 से पूर्व एसईसीएल को आबंटित हुआ है जिसमें नगर पंचायत क्षेत्र के 3 वार्ड सहित लगभग 7 गांव प्रभावित होंगे। वही कर्नाटका पावर कॉरपोरेशन को मिलने वाली दुर्गापुर टु तराईमार और दुर्गापुर टू सरिया खुली खदान में नगर पंचायत क्षेत्र के वार्ड क्रमांक 9 और 10 के साथ लगभग 7 गांव पूरी तरह प्रभावित होंगे। कर्नाटका पावर कारपोरेशन को मिलने वाली खदान पहले डीबी पावर लिमिटेड और वेदांत समूह को आबंटित हुआ था। मगर मार्च 2020 में दोनों खदान को मर्ज कर एक खदान बनाकर आबंटित किया गया है। रिजर्व फॉरेस्ट के अंदर नीलकंठ कोल माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड को शेरबंद के नाम से कोयला खदान आबंटित हुआ है। इस खदान में लगभग 5 गांव प्रभावित होंगे। जिसमें बिरहोर जनजाति का एक गांव पूरी तरह प्रभावित होगा। 18 जनवरी 2024 को आबंटित इंद्रमणि मिनरल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को आबंटित बायसी कोयला खदान तथा छाल क्षेत्र के फटामुंडा कोयला खदान जिसे एलोम सोलर प्राइवेट लिमिटेड ने 2025 में हासिल किया है। इसके अलावा पुरूंगा अंडरग्राउंड कोयला खदान को मिलाकर लगभग 56 गांव के प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। इस मामले में ग्रामीणों का कहना है कि यह सिर्फ जमीन का नुकसान नहीं होगा, बल्कि सदियों पुरानी सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना भी टूट जाएगी।
किसानों और आदिवासियों में बढ़ी चिंता – “अदानी के बाद अब कौन?”

अदानी की परियोजना को लेकर चल रहे विरोध और जनसुनवाई के विवाद के बीच अब एसईसीएल और कर्नाटका पावर कॉरपोरेशन के सर्वे शुरू होने की खबरों ने लोगों में बेचैनी और बढ़ा दी है। कई किसानों का कहना है कि अदानी परियोजना पर अभी स्पष्ट निर्णय नहीं आया, और अब दो नए कॉर्पोरेट समूहों की एंट्री ने यह आशंका पैदा कर दी है कि धरमजयगढ़ जल्द ही दक्षिण पूर्वी कोयला हब में बदल जाएगा।
मुआवजा निर्धारण में भारी विसंगति – आदिवासी इलाकों में बाजार मूल्य बहुत कम

ग्रामीणों का सबसे बड़ा सवाल “जमीन जाएगी, लेकिन कीमत कौन तय करेगा?” आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बाजार मूल्य बाकी ब्लॉकों की तुलना में बहुत कम आंका गया है। कई क्षेत्र ऐसे है जहां कई सालों से कृषि भूमि का बाजार मूल्य में कोई संशोधन नहीं हुआ है।यही कारण है कि खदानों के लिए अधिग्रहित होने वाली जमीन का मुआवजा बेहद कम आका जा रहा है। किसानों का आरोप है कि रजिस्ट्री बाज़ार मूल्य मनमाने ढंग से कम रखा जाता है। खनन क्षेत्र घोषित होते ही धरमजयगढ़ क्षेत्र में 2011 से प्रभावित क्षेत्र के जमीनों की खरीदी-बिक्री पर रोक लगा दी गई धरमजयगढ़ कॉलोनी दुर्गापुर ,बायसी, मेडरमार सहित कई आदिवासी इलाकों में कई वर्षों से भूमि के बाजार मूल्य में भी कोई संशोधन नहीं हुआ है। कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए जमीन की कीमतें कृत्रिम रूप से घटाई गई हैं इसके चलते किसान और आदिवासी परिवार आर्थिक असमानता के शिकार बनते जा रहे हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ पुनर्वास नीति में पिछले 14 वर्षों से कोई संशोधन नहीं हुआ है जिसमें 19 मार्च 2010 के संशोधित पुनर्वास नीति के अनुसार पड़त भूमि प्रति एकड़ ₹6 लाख एक फसली असिंचित भूमि ₹8 लाख प्रति एकड़ वही सिंचित दो फसली भूमि 10 लाख रुपया प्रति एकड़ मुआवजा निर्धारित है। इन्हीं विसंगतियों के कारण कोयला खदानों से प्रभावित होने वाले किसानों को उचित मुआवजा का निर्धारण नहीं हो पा रहा है जिस कारण किसान लगातार कोयला खदान स्थापना का विरोध कर रहे हैं।
अनुसूचित क्षेत्र में पेसा कानून लागू करने की मांग तेज

धरमजयगढ़ ब्लॉक अनुसूचित क्षेत्र में आता है, जहां पेसा कानून ग्रामसभा को सर्वोच्च अधिकार देता है। लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि ग्रामसभाओं की राय नहीं ली जाती जनसुनवाई औपचारिकता बनकर रह गई है जमीन अधिग्रहण में स्थानीय परंपराओं और अधिकारों को दरकिनार किया जाता है । इसी वजह से अब “धरमजयगढ़ में पेसा कानून को पूर्ण रूप से लागू करो” आंदोलन तेज हो रहा है। 19 नवंबर से 24 नवंबर 2025 तक प्रशासन ने ग्राम सभा के बैठक का आयोजन करने के लिए पंचायत को पत्र जारी किया है वही एसईसीएल और कर्नाटका पावर कॉरपोरेशन के प्रभावित क्षेत्र के किसान इन ग्राम सभाओं में भी उद्योग स्थापना को लेकर भारी संख्या में अपनी विरोध दर्ज कर सकते हैं।
विकास बनाम विनाश – धरमजयगढ़ किस ओर?

विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी खनन श्रृंखला शुरू होने पर बड़े पैमाने पर वन कटाई आदिवासी गांवों का विस्थापन जलस्रोतों पर असर पर्यावरणीय असंतुलन जैसे खतरे निश्चित हैं। उद्योग स्थापना से पहले प्रशासन और सरकार को इस दिशा में सकारात्मक पहल करने की जरूरत है जिसके लिए पर्यावरण संरक्षण वृक्षारोपण प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण तथा लोगों केरोजगार के दिशा में योजनाबद तरीके से काम करना होगा।
ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है—
“हमें विकास चाहिए, हमारी अस्तित्व और अधिकारों को छीने बिना, हमारी पहचान मिटाए बिना।” सरकार की भूमिका पर उठ रहे सवाल ग्रामीण संगठन और युवा मंच आरोप लगा रहे हैं कि खनन कंपनियों के दबाव में प्रशासन गांव में बिना अनुमति सर्वे करवाने की कोशिश कर रहा है। लोगों ने चेतावनी दी है कि यदि पेसा का पालन नहीं किया गया तो जनआंदोलन को तेज किया जाएगा।





