
रायगढ़ जिले का जंगल, आदिवासी संस्कृति और कृषि भूमि होगी प्रभावित
खरसिया में 1, धरमजयगढ़ में 6 , तमनार में 10, घरघोड़ा में 1 खदान
क्रांतिकारी न्यूज
रायगढ़। भारत सरकार कोयला मंत्रालय द्वारा 2014 के बाद अब तक छत्तीसगढ़ में लगभग 25 कोयला खदानें आबंटित की गई हैं। कोयला मंत्रालय द्वारा जारी सूची के अनुसार इन 10 सालों में रायगढ़ जिले में ही केवल 18 कोयला खदानें आबंटित हुई हैं, जिसमें खरसिया में 1, धरमजयगढ़ में 6, तमनार में 10 और घरघोड़ा में 1 कोयला खदान शामिल हैं।
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार निकट भविष्य में रायगढ़ जिले के खरसिया और धरमजयगढ़ क्षेत्र में दो नए कोयला परियोजनाओं को मंजूरी मिल सकती है। रायगढ़ जिले के 18 कोयला खदानों में से 16 खदानें निजी कंपनियों के हाथों में है। दो कोयला खदान कोल इंडिया यानी एसईसीएल के पास है। कोल इंडिया की दो में से एक खदान दुर्गापुर खुली खदान परियोजना पिछले 15 सालों में अधर पर लटकी हुई है। वहीं पेलमा सेक्टर 1 की खुली खदान एमडीओ के माध्यम से निजी हाथों में जा चुकी है। रायगढ़ जिले में प्रस्तावित 18 खदानों के शुरू होने से जिले का व्यावसायिक विकास होने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी खुलेंगे। लेकिन इन खदानों के शुरू होने से रायगढ़ जिले के पर्यावरण जल जंगल और जमीन पर भी व्यापक असर होगा। वन मंडल धरमजयगढ़ का बड़ा वन क्षेत्र जंगल काटे जाएंगे। जिससे वन परिक्षेत्र धरमजयगढ़, छाल, बोरो, के अलावा तमनार के जंगल उजड़ जाएंगे। धरमजयगढ़ में सीजी नेचुरल रिसोर्सेस प्राइवेट लिमिटेड को पुरुंगा, नीलकंठ कोल माइंस प्राइवेट लिमिटेड को शेरबंद, इंद्रमणि मिनरल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को बायसी और केपीसीएल को दुर्गापुर -2तराईमार एवं दुर्गापुर- 2/एस एलोम सोलर प्राइवेट लिमिटेड को फ़ुटामुड़ा कोल ब्लॉक आबंटित हुआ है। यह चारों खदान पूरी तरह धरमजयगढ़ वन मंडल को प्रभावित करने वाला है। इन पांचों खदानों में धरमजयगढ़ वन मंडल का बड़ा वन क्षेत्र प्रभावित होगा लाखों पेड़ काटे जाएंगे। इसके अलावा आदिवासी, पिछड़ी जनजाति, बिरहोर जनजाति के साथ-साथ सामान्य वर्ग के हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि भी प्रभावित होंगे।
रायगढ़ जिले के औद्योगीकरण और कोयला खदानों से प्रभावित होने वाले लोगों के पुनर्व्यवस्थापन रोजगार और मुआवजा के संदर्भ में राज्य व केंद्र सरकार को गंभीरता से पुनर्विचार करना होगा। क्योंकि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में प्रभावितों को मिलने वाला मुआवजा राशि काफी कम है। प्रभावित क्षेत्रों में उचित मुआवजा का निर्धारण और पर्यावरण संरक्षण बड़ा मुद्दा है जिसको लेकर सभी क्षेत्रों में जन आंदोलन देखा जा रहा है। तमनार के मुड़ागाँव क्षेत्र में महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को आबंटित गारे पेलमा सेक्टर- द्यद्य में अदानी समूह द्वारा जंगल के कटाई के मामले ने पूरे छत्तीसगढ़ का राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है। वहीं स्थानीय किसान और जनप्रतिनिधियों में भी आक्रोश देखा जा रहा है। ऐसा ही आलम पूरे रायगढ़ जिले में देखा जा सकता है। क्योंकि आने वाले वर्षों में रायगढ़ जिला छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा कोल हब बनने जा रहा है। फिलहाल रायगढ़ जिले में दर्जन भर कोयला खदानें संचालित हैं जिसमें एसईसीएल की जामपाली ,छाल, बरौद, घरघोड़ा की खदानों के साथ-साथ गारे पेलमा 4/1,4/2,4/3 में तथा अन्य खदानों में कोयले का उत्पादन हो रहा है। ऐसे में इन 10 सालों में स्वीकृति मिल चुकी खदानों के शुरू होने से रायगढ़ जिले की दिशा और दशा दोनों बदल जाएगा। इन खदानों को शुरू करने में सबसे ज्यादा नुकसान रायगढ़ जिले के वन क्षेत्र और पर्यावरण को उठाना पड़ेगा।
तीन खदान का एमडीओ अडानी के पास
2014 के कोयला खदान की आबंटन प्रक्रिया में बड़ी संख्या में निजी कंपनियों ने भाग लिया है। कोयला मंत्रालय द्वारा आक्शन और अलॉटमेंट प्रक्रिया में अलग-अलग कंपनियों को कोयला खदाने आबंटित हुए हैं। मगर रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ में सीजी नेचुरल रिसोर्सेस प्राइवेट लिमिटेड को आबंटित पुरुंगा कोयला खदान, तमनार में गारे पेलमा सेक्टर- द्यद्य महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड और कोल इंडिया की गारे पेलमा सेक्टर- 1 कोयला खदान को अदानी समूह में एमडीओ के माध्यम से हासिल कर लिया है। रायगढ़ जिले में आबंटित होने वाले 18 खदानों में से तीन कोयला खदान फिलहाल अडानी समूह के हाथ में है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि धरमजयगढ़ और तमनार के दो खदान एमडीओ प्रक्रिया में जाने वाली है।
चार खदानों पर जिंदल का कब्जा
जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड इस्पात संयंत्र के साथ-साथ कोल सेक्टर में भी एक बड़ा नाम है। जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ने 2014 के बाद आबंटित होने वाले रायगढ़ जिले के 17 कोयला खदानों में से 4 कोयला खदानों को ऊची बोली लगाकर अपने नाम कर लिया है। जिसमें गारे पेलमा ।1/1,।1/2, ।1/3, ।1/6, शामिल हैं। ये खदानें रायगढ़ क्षेत्र में जेएसपीएल की इस्पात और बिजली उत्पादन आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होगी.

पर्यावरण संरक्षण, पुनर्वास और मुआवजा निर्धारण बड़ी चुनौती
खदानों को शुरू करने के प्रारंभिक प्रक्रिया में ही पेड़ों की कटाई होना स्वाभाविक है। इस प्रक्रिया में रायगढ़ जिले के पर्यावरण को भारी छती पहुंचने वाली है। ऐसे में शासन प्रशासन और उद्योगों के लिए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सकारात्मक कार्य कर पाना बड़ी चुनौती है। इसके अलावा बड़े संख्या में इन खदानों में क्षेत्र के आदिवासी वर्ग तथा किसान व सामान्य वर्ग प्रभावित होंगे। जिनका समुचित पुनर्वास, रोजगार और मुआवजा का निर्धारण शासन प्रशासन और उद्योग के लिए बड़ी चुनौती बनने वाली है। क्योंकि छत्तीसगढ़ में आदर्श पुनर्वास नीति में पिछले 14 वर्षों से कोई संशोधन नहीं हुआ है। और रायगढ़ जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में भूमि का बाजार मूल्य बहुत कम है। जिस कारण प्रभावित किसानों को मिलने वाले मुआवजा राशि का निर्धारण अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत कम होता है। जिस कारण भी उद्योग और प्रशासन को जन आक्रोश का सामना करना पड़ता है।
विकास का पैमाना विनाश से नहीं आका जा सकता: रामचंद शर्मा
रायगढ़ जिले के प्रसिद्ध शिक्षाविद पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे नवनिर्माण संकल्प समिति के अध्यक्ष रामचंद्र शर्मा ने बताया कि विकास मानव जीवन और समाज को व्यवस्थित तथा सुचारू बनाने का मापदंड है। गांव, कस्बा, शहर और जिले का विकास होना आवश्यक है। मगर विकास का पैमाना विनाश नहीं होना चाहिए। रायगढ़ जिला पूरी तरह प्रदूषण की चपेट में है। वर्तमान समय में फ्लाई ऐश और डस्ट की काली चादर ओढ़े रायगढ़ जिले का जंगल और जीवन चाहे वह इंसान हो या जानवर अपनी अस्तित्व की लड़ाई स्वयं ही लड़ रहा है। ऐसे में लगातार रायगढ़ जिले में कोयला खदानों को मंजूरी मिलना वास्तव में चिंताजनक है। निश्चित ही खदानों के खोलने की प्रक्रिया में रायगढ़ जिले के जंगल प्रभावित होंगे। जंगलों को उजाडऩे से पहले वन विभाग और शासन प्रशासन को वन और पर्यावरण संरक्षण के दिशा में आत्म चिंतन करने की जरूरत है। रायगढ़ जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है रायगढ़ धरमजयगढ़ तमनार खरसिया के वन क्षेत्र में सर्वाधिक आदिवासी वर्ग के लोग रहते हैं रायगढ़ जिले में जिन खदानों को मंजूरी मिली है वह सभी आदिवासी वन क्षेत्र में है जिससे पूरी तरह लोगों का जनजीवन प्रभावित होगा।