
इस टीम में एलीफेंट ट्रैक्टर, चौकीदार, हाथी मित्र दल, बीट गार्ड, डिप्टी रेंजर, रेंज ऑफिसर, दो उप मंडलाधिकारी, वन मंडल अधिकारी सहित लगभग 25 सदस्य शामिल थे।
क्रांतिकारी न्यूज़ रायगढ़ / मां से बिछड़े हाथी के नन्हें शावक को वन विभाग की टीम ने मां से मिलाया, वन विभाग के प्रयास से पत्थरों के बीच खाई में फंसे शिशु हाथी को बहुत ही अथक प्रयास से सफल रेस्क्यू कर बचाया गया और उसके माता से मिलाया गया। वन्य प्राणियों का रेस्क्यू करना बहुत ही खतरे का काम होता है जब भी हम किसी वन्य प्राणी की जान बचाते हैं और वह जब अपने को सुरक्षित समझते हैं तो सबसे पहले सबसे करीब व्यक्ति के ऊपर ही आक्रमण करते हैं. यह उनका सामान्य स्वभाव है इस स्वभाव को ध्यान रखते हुए रेस्क्यू टीम को अपनी जान बचाते हुए यह काम करना पड़ता है।
तारीख 28 मार्च की दरमियानी रात तकरीबन दो से तीन बजे के बीच धर्मजयगढ़ वन मंडल अधिकारी को सूचना मिली की जमबिरा बिट, रेंज बकरूमा में जंगल की ओर से हाथी के बच्चे एवं हाथी की आवाज आ रही है ऐसा प्रतीत हो रहा है की हाथी किसी परेशानी में हैं।

वन मंडल अधिकारी ने तुरंत स्थिति की जांच के लिए टीम भेजी और पाया कि एक हाथी का शावक पत्थरों के बीच में फंस गया है शावक को बचाने का अभियान प्रारंभ हुआ और शावक को तकरीबन 9 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन पश्चात गड्डे से बाहर निकाला गया। अब बड़ी समस्या थी मां से मिलाने की, यह भी एक चिंता थी कि मां स्वीकार करेगी या नहीं स्वीकार करेंगी।

कई बार अस्वीकार करती है और बच्चे को साथ नहीं ले जाती या बच्चा वापस रेस्क्यू टीम के साथ या बाद में आ जाता है यह भी चिंता थी। पास में विचरण कर रहे हाथी के दल का लोकेशन लिया गया और हाथी के दल से मिलाने का प्रयास प्रारंभ हुआ और अंततः सफलता मिली आज दोपहर लगभग 12:00 बजे बच्चे को मां से मिलाया गया और मां बच्चे को लेकर जंगल की ओर चली गई। यह बहुत ही मार्मिक एवं भावुक पल था पूरी टीम के चेहरे में ऐसी खुशी थी कि मानो खुद का बच्चा मिल गया हो।

फॉरेस्ट एसडीओ बालगोविंद साहू ने सोशल मीडिया पर फोटो वीडियो शेयर किया
काफी मेहनत मशक्कत से इस सफल रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देने के बाद फॉरेस्ट एसडीओ बालगोविंद साहू ने सोशल मीडिया पर फोटो वीडियो शेयर कर लिखा कि :अंततः हमने सफलतापूर्वक शिशु हाथी (7-8 महीने की) को उसकी माँ और जंबो के पूरे जमात से मिलाया। शिशु हाथी रात के समय चट्टानों के बीच फंस गया था और चढ़ने में असमर्थ था। हमने उसे चढ़ने में मदद करने के लिए कुदाल से अस्थायी कदम बनाए, फिर काफी प्रयास के बाद लगभग 4 किमी की दूरी तय करके हम झुंड का पता लगाने के लिए हाथी ट्रैकिंग विधि और ड्रोन तकनीक का उपयोग करके झुंड से मिले, बीच-बीच में हम शिशु हाथी को लगातार गुड़ का पानी पिला रहे थे और शरीर के तापमान को नियंत्रित करने और शिशु को तनाव मुक्त करने के लिए उसके शरीर पर पानी भी डाल रहे थे। कुछ समय बाद शिशु हमसे बहुत दोस्ताना हो गया और हमारे साथ बच्चों जैसा खेलना शुरू कर दिया और हमने भी उसका मनोरंजन किया। और जब हम उसे चला रहे थे, तो उसने महसूस किया कि हम उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी माँ और परिवार से फिर से मिल पाना। यह हमारे लिए बहुत अच्छा अनुभव और सीख थी, हालाँकि ऐसे ऑपरेशन बहुत जोखिम भरे होते हैं, लेकिन हमने अपने प्रयास और सूझबूझ से इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।