
राजनीतिक वर्चस्व की परीक्षा में कौन पास, कौन फेल, रिजल्ट के बाद होगा आकलन
क्रांतिकारी न्यूज
रायगढ़। नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव रायगढ़ जिले की राजनीति और राजनेताओं के लिए अलग ही महत्व रखता है, यह चुनाव इसलिए भी खास है। क्योंकि इस चुनाव के रणभेरी में उतरने वाले अभ्यर्थियों के अलावा कांग्रेस और भाजपा के बड़े नेताओं का राजनीतिक वर्चस्व भी दांव पर लगा है। इस चुनाव को कई बड़े नेताओं की कार्य कुशलता, मैनेजमेंट, संगठनात्मक क्षमता और रणनीति जैसे कई राजनीतिक गुणों और महारथ की क्षमता की परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि इस परीक्षा में कौन पास और कौन फेल है, इसका आकलन तो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और नगरीय निकाय के चुनाव के परिणाम आने के बाद ही लोग करेंगे। मगर 11 फरवरी को नगरीय निकाय चुनाव संपन्न होने के बाद लोग रायगढ़ विधायक व प्रदेश के वित्त मंत्री ओपी चौधरी, खरसिया के विधायक पूर्व मंत्री उमेश पटेल, रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के सांसद राधेश्याम राठिया, धरमजयगढ़ के विधायक लालजीत सिंह राठिया, भाजपा के जिला अध्यक्ष अरुण धर दीवान और कांग्रेस के ग्रामीण जिला अध्यक्ष नगेंद्र नेगी के राजनीतिक सूझबूझ और क्षमता का आकलन अभी से लोग करने लगे हैं। क्योंकि यह पूरा चुनाव खरसिया और धरमजयगढ़ क्षेत्र के बड़े नेताओं के फैसलों पर ही केंद्रित रहा है। नगरीय निकाय चुनाव संपन्न हो चुका है। अब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में राजनीति के दिग्गज अपने-अपने समर्थकों के लिए जोर लगाएंगे।
रायगढ़ जिले में पांच नगर पंचायत, एक नगर पालिका और एक नगर निगम है इसके साथ रायगढ़ जिले में अब 18 जिला पंचायत क्षेत्र है जिसमें धरमजयगढ़, लैलूंगा, खरसिया और रायगढ़ विधानसभा शामिल है। रायगढ़ जिले चार विधानसभा में से तीन विधानसभा क्षेत्र धरमजयगढ़, लैलूंगा और खरसिया में कांग्रेस के विधायक हैं। रायगढ़ में भाजपा के ओपी चौधरी विधायक और मंत्री हैं। भाजपा में लिए जाने वाले संगठन के अंदर और बाहर के सारे फैसले ओपी चौधरी की सहमति के बाद ही स्वीकृत हो रहे हैं। वहीं कांग्रेस में भी उमेश पटेल ही फाइनल डिसीजन लेते हैं। मगर दोनों ही नेता मैच का आखिरी गेंद संगठन के पाले में डाल देते हैं। 15 फरवरी को नगरीय निकाय चुनाव का परिणाम आ जाएगा, इसके बाद 20 फरवरी को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का परिणाम भी आएगा। फिर अंत में पता चलेगा कि आम जनता ने किसके फैसलों पर अपनी मोहर लगाई है।

ओपी और उमेश में क्या है समानताएं
ओपी चौधरी और उमेश पटेल में कई समानताएं और विशेषताएं हैं जिस कारण दोनों ही नेता अपने-अपने पार्टी और जनता तथा कार्यकर्ताओं के बीच अलग महत्व रखते हैं। रायगढ़ जिले के लोग दोनों ही नेता को आशाभरी निगाहों से देखते हैं। कांग्रेस और भाजपा के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व भी इन दोनों नेताओं की कार्य कुशलता पर अपनी नजऱें बनाए हुए हैं। इस बार पंचायत और नगर निकायों के चुनाव में चुनावी कमान भाजपा की ओर से वित्त मंत्री ओपी चौधरी के हाथों में है। वहीं कांग्रेस पार्टी की ओर से रायगढ़ जिले में खरसिया विधायक उमेश पटेल ही संगठनात्मक दृष्टि से नेतृत्व कर रहे हैं। ओपी चौधरी वर्तमान में प्रदेश के सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक हैं और रायगढ़ जिले में अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिए संगठनात्मक दृष्टि से भी खूब मेहनत कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस और उमेश पटेल विपक्ष में है। सत्ता शासन से उम्मीद की गुंजाइश नहीं है। अपने बलबूते विपक्ष की राजनीति कर रहे हैं मगर पूर्व मंत्री उमेश पटेल के पास भी लगभग 11,12 वर्षों का संगठन संचालन का अनुभव है। खुद के अलावा कांग्रेस के और दो विधायक हैं जो रायगढ़ जिले की राजनीति में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। फिलहाल इस चुनाव में दोनों नेताओं के राजनीतिक वर्चस्व को देखा जा रहा है। 15 और 20 फरवरी के बाद स्पष्ट तौर पर यह आकलन कर पाना संभव होगा कि कौन नेता किस क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम रख पाने में सफल हुआ है। इसीलिए नगर निकाय चुनाव के बाद अब उमेश पटेल और ओपी चौधरी जिला पंचायत में अपने पार्टी के समर्थक प्रत्याशियों को जीतने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे।
खरसिया और धरमजयगढ़ क्यों है राजनीति के केंद्र बिंदु
क्योंकि कांग्रेस के सर्वमान्य नेता उमेश पटेल खरसिया के नंदेली के निवासी हैं। इसके अलावा कांग्रेस के नवनियुक्त जिला अध्यक्ष नगेंद्र नेगी खरसिया विधानसभा के कोसमनारा के रहने वाले हैं। विधायक लालजीत सिंह राठिया धरमजयगढ़ विधानसभा के छाल क्षेत्र के बोकरामुंडा वृंदावन के निवासी हैं। वहीं प्रदेश के वित्त मंत्री ओपी चौधरी खरसिया के बायंग गांव के रहने वाले हैं, फिलहाल वे रायगढ़ के मतदाता और विधायक हैं। भाजपा के नवनियुक्त जिला अध्यक्ष अरुण धर दीवान धरमजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र के घरघोड़ा के निवासी हैं। रायगढ़ लोकसभा के सांसद राधेश्याम राठिया धरमजयगढ़ विधानसभा के घरघोड़ा क्षेत्र के छर्राटांगर गांव के निवासी है। इस लिहाज से भी रायगढ़ जिले का राजनीतिक केंद्र बिंदु खरसिया और धरमजयगढ़ बना हुआ है। हालांकि इससे पहले भी खरसिया विधानसभा को ही रायगढ़ जिले के राजनीतिक फैसलों का पावर हब माना जाता रहा है। और अब भी रायगढ़ जिले की राजनीति खरसिया के बायंग और नंदेली के इर्द गिर्द घूम रही है।
लालजीत और राधेश्याम में क्या है समानताएं
लालजीत सिंह राठिया और राधेश्याम राठिया दोनों ही धरमजयगढ़ विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी नेता है। इनकी समानता और विशेषता यह है कि यह दोनों ही धरमजयगढ़ के अलावा जिले के राजनीति में भी अपना अलग महत्व रखते हैं। लालजीत सिंह राठिया तीन बार के विधायक हैं। वहीं राधेश्याम राठिया पहली बार सांसद बने हैं इससे पहले जनपद और जिला पंचायत के सदस्य के रूप में भी काम कर चुके हैं। धरमजयगढ़ विधानसभा अंतर्गत दो नगर पंचायत और चार जिला पंचायत क्षेत्र शामिल है। इस क्षेत्र में अपने-अपने जिला पंचायत तथा धरमजयगढ़ और घरघोड़ा जनपद पंचायत में भी भाजपा और कांग्रेस समर्थित अध्यक्ष बनाने की कवायत में दोनों नेता पूरी ताकत लगा रहे हैं। धरमजयगढ़ में विधायक लालजीत सिंह राठिया और राधेश्याम राठिया का राजनीतिक वर्चस्व दाव पर लगा है। दोनों ही नेता अपने-अपने समर्थित प्रत्याशियों को जीताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। अब देखना यह होगा कि धरमजयगढ़ विधानसभा अंतर्गत दो नगर पंचायत दो जनपद पंचायत और चार जिला पंचायत क्षेत्र में कौन अपना वर्चस्व कायम कर पाता है या रख पाता है।
अरुण धर और नागेंद्र में क्या है समानताएं
अरुण धर और नगेंद्र नेगी दोनों ने ही जनवरी 2025 में संगठन की बागडोर संभाली है। अरुणधर की ताजपोशी 5 जनवरी को हुई और नगेंद्र नेगी की ताजपोशी 13 जनवरी को, दोनों को ही नगर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी के लिए बहुत कम समय मिला, मगर दोनों ने ही कम समय में अपनी जिम्मेदारियां को संभाल लिया। अरूण धर दीवान छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के घरघोड़ा इकाई के अध्यक्ष रहे। उसके बाद जिला भाजपा के उपाध्यक्ष रहे लंबे समय तक भाजपा जिला महामंत्री का दायित्व भी संभाल अब वह रायगढ़ भाजपा के जिला अध्यक्ष है। वहीं नगेंद्र नेगी ने भी छात्र जीवन से ही अपनी राजनीति की शुरुआत की। एनएसयूआई युवा कांग्रेस की कमान भी उनके हाथ में थी। नागेंद्र को शहर कांग्रेस अध्यक्ष होने का भी गौरव हासिल है। अब नागेंद्र नेगी जिला कांग्रेस कमेटी ग्रामीण के अध्यक्ष की बागडोर संभाल रहे हैं। संगठन की दृष्टि से दोनों ही नेताओं के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है। अरुण और नेगी को बहुत कम समय में बड़ी जिम्मेदारी मिली है। संगठन के मुखिया होने के नाते पार्टी के हार जीत का ठीकरा इन्हीं के सिर फूटना है। हालांकि इस चुनाव में अरुण धर और नगेंद्र नेगी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच अपना वर्चस्व कायम कर पाते हैं या नहीं, यह तो नगर निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का रिजल्ट तय करेगा।